भौतिक सफलता की अपनी सीमाएँ होती हैं, क्योंकि शरीर-समाप्ति के समय यह भी समाप्त हो जाती हैं। केवल आध्यात्मिक सफलता ही वास्तविक है, क्योंकि यह हमारे साथ शाश्वत रूप से रहती है। आध्यात्मिक सफलता हमें जन्म, मृत्यु, जरा तथा व्याधि दुष्चक्र से मुक्ति दिलाती है। ऐसी स्वतन्त्रता केवल दुःख के अभाव की स्थिति नहीं है, अपितु यह शुद्ध प्रेम की भावना में पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के साथ हमारे शाश्वत संबंध पर आधारित विविध आध्यात्मिक विनिमयों से पूर्ण होती है। अब, हम इस आध्यात्मिक सफलता को कैसे प्राप्त कर सकते हैं? हम अपनी वर्तमान स्थिति—जो हमें हमारी भौतिक, शारीरिक बद्ध-स्थिति के अनुसार कार्य करने पर बाध्य करती है—से परे देखकर इसे प्राप्त कर सकते हैं। जिस प्रकार भौतिकवादी भौतिक सफलता प्राप्त करने के लिए बन्द बक्से से परे सोचता है, हमें शरीर से परे विचारना चाहिए। श्री श्रीमद् जयपताका स्वामी विरचित “अन्ते नारायण-स्मृतिः” नामक यह अद्भुत ग्रन्थ निश्चित रूप से प्रत्येक पाठक को वांछित आध्यात्मिक सफलता प्राप्त करने के लिए शरीर से बाहर तथा उससे परे सोचने में सक्षम बनाएगा!
अन्ते नारायण-स्मृतिः
भौतिक सफलता की अपनी सीमाएँ होती हैं, क्योंकि शरीर-समाप्ति के समय यह भी समाप्त हो जाती हैं। केवल आध्यात्मिक सफलता ही वास्तविक है, क्योंकि यह हमारे साथ शाश्वत रूप से रहती है। आध्यात्मिक सफलता हमें जन्म, मृत्यु, जरा तथा व्याधि दुष्चक्र से मुक्ति दिलाती है। ऐसी स्वतन्त्रता केवल दुःख के अभाव की स्थिति नहीं है, अपितु यह शुद्ध प्रेम की भावना में पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के साथ हमारे शाश्वत संबंध पर आधारित विविध आध्यात्मिक विनिमयों से पूर्ण होती है। अब, हम इस आध्यात्मिक सफलता को कैसे प्राप्त कर सकते हैं? हम अपनी वर्तमान स्थिति—जो हमें हमारी भौतिक, शारीरिक बद्ध-स्थिति के अनुसार कार्य करने पर बाध्य करती है—से परे देखकर इसे प्राप्त कर सकते हैं। जिस प्रकार भौतिकवादी भौतिक सफलता प्राप्त करने के लिए बन्द बक्से से परे सोचता है, हमें शरीर से परे विचारना चाहिए। श्री श्रीमद् जयपताका स्वामी विरचित “अन्ते नारायण-स्मृतिः” नामक यह अद्भुत ग्रन्थ निश्चित रूप से प्रत्येक पाठक को वांछित आध्यात्मिक सफलता प्राप्त करने के लिए शरीर से बाहर तथा उससे परे सोचने में सक्षम बनाएगा!
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